Jyotish
कुण्डलीं में शनि की महादशा सामान्य फल ..राव' ण सहिंता के अनुसार..
कुंडली में शनि की महादशा का फल
महात्मा राव' ण की पुस्तक राव 'ण सहिंता के पांचवे खंड में ज्योतिष विद्या का उल्लेख है जिसमे काफी सटीक जानकारी प्राप्त होती है | रावण सहिंता से प्राप्त जानकारी के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुंडली में शनि की महादशा आने पर उस व्यक्ति के जीवन पर सामान्य फलादेश क्या प्राप्त होंगे उसकी जानकारी सांझा करूँगा |
यदि शनि पूर्ण बली की दशा में हो तो वाहन, घर, पराक्रम, यश, दान-धर्म, उच्चाधिकार, कला-कुशलता आदि अनेक प्रकार का लाभ प्राप्त होता है। मध्यम बली होने पर यश, देव भक्ति तथा बुद्धि और कुल में प्रधानता का लाभ प्राप्त होता है। हीन बली होने पर चर्म रोग, आलस, उदासी, निद्रा आदि अनेक अशुभ फल प्राप्त होते हैं।
शनि का राशियों में फलादेश
- मेष राशि में होने से मित्र-वियोग और अनेक कष्टों को सहना पड़ता है।
- वृष में होने से साहस, पराक्रम, विजय तथा स्त्रियों से मित्रता होती है।
- मिथुन में होने पर कष्ट, चिन्ता और ऋणग्रस्तता प्राप्त होती है।
- कर्क में होने से मित्र-वियोग, सामान्य-सुख और दरिद्रता प्राप्त होती है।
- सिंह में होने से स्त्री एवं पुत्र के साथ कलह तथा आर्थिक कष्ट प्राप्त होते हैं।
- कन्या में होने से घर का सुख, भूमि लगान तथा आर्थिक दृढ़ता आदि प्राप्ति होती है ।
- तुला में होने से भोग, सम्मान, धन-संपत्ति आदि का लाभ होता है।
- वृश्चिक राशि में होने पर भ्रमण कार्य, आर्थिक कष्ट तथा देशान्तर प्रवास आदि लाभ होते हैं।
- धनु में होने से विजय, सुख, आनंद, धर्म आदि लाभ प्राप्त होते हैं।
- मकर में हो तो हानि, विपत्ति, आर्थिक कष्ट, विषय लिप्सा आदि प्राप्त होते हैं।
- कुंभ में होने पर स्त्री- पुत्र सुख तथ धन-लाभ होता है।
- मीन में होने पर अनेक प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।
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शनि का कुंडली के सभी भावो में सामान्य फलादेश
- प्रथम भाव में हो तो चिन्ता, आर्थिक हानि आदि अशुभ फल प्राप्त होते हैं।
- द्वितीय भाव में हो पर स्त्री कष्ट, राज-भय तथा कौटुम्बिक भय बना रहता है।
- तृतीय भाव में होने पर पराक्रम में वृद्धि और राज-भय होता है।
- चतुर्थ भाव में होने पर शत्रु तथा राज्याधिकारी से भ्रम प्राप्त होता है।
- पंच भाव में होने पर संतान कष्ट, बुद्धि का नाश तथा धन की कमी होती है।
- षष्ठ भाव में होने पर धन- लाभ परन्तु शारीरिक एवं मानसिक कष्ट होता है।
- सप्तम भाव में होने पर रोग नाश, धन-लाभ, सु तथा शत्रु नाश होता है।
- अष्टम भाव में होने पर अपमान, मृत्यु-तुल्य कष्ट और भयंकर रोग होते हैं।
- नवम भाव में होने पर रोग-नाश, शत्रु-नाश, सुख और धन लाभ होता है।
- दशम भाव में होने पर स्त्री, पुत्र और सेवक से त्रास तथा व्यवसाय में विघ्न आता है।
- एकादश भाव में होने पर उत्कर्ष, राज सम्मान तथा अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।
- द्वादश भाव में होने पर राज-दण्ड, अपयश ऋणग्रस्तता और दुख आदि प्राप्त होता है।
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