कुंडली में शुक्र की महादशा में आपको क्या मिलेगा ...जाने ...
कुंडली में शुक्र की महादशा का फल (राव' ण संहिता के अनुसार)
यदि शुक्र पूर्णबली हो तो वाहन, स्त्री, रत्नाभूषण आदि का सुख मिलता है। क्रय-विक्रय में सम्मान व दक्षता का लाभ होता है। मध्यम बली होने से विदेश यात्रा, अपने पूर्वजों के धन का लाभ, धन, वाहन, पुत्र-पौत्रादि का लाभ तथा स्वजनों से कलह का भय रहता है। हीनबली होने से शारीरिक दुर्बलता, दुष्ट लोगों से मैत्री तथा देव-ब्राह्मणों की चिन्ता आदि रहती है।
राव' ण सहिंता के अनुसार जब किसी भी व्यक्ति की कुंडली में चन्द्र की महादशा आती है तब उस व्यक्ति की जीवन में चन्द्र का सामान्य फलादेश क्या रहेगा उसका उल्लेख निम्न प्रकार है -
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शुक्र का राशियों में फलादेश
- मेष राशि में होने से धन हानि, स्त्री तथा सुख की हानि एवं उद्वेग आदि होता है।
- वृष में होने सं धन, विद्या, स्थायी संपत्ति आदि का लाभ होता है।
- मिथुन में होने पर ग्रंथ का लेखन, कला- कुशलता तथा विद्या आदि लाभ मिलते हैं।
- कर्क में होने पर व्यापार-व्यवसाय में वृद्धि तथा स्त्रियों से प्रेम होता है।
- सिंह में होने से स्त्री द्वारा लाभ और सामान्य अर्थ कष्ट प्राप्त होता है।
- कन्या में हो पर आर्थिक कष्ट, स्त्री-पुत्र से हानि और व्यवसाय में वृद्धि होती है।
- तुला में होने पर आदर-सम्मान स्त्री, पुत्र, धन आदि लाभ प्राप्त होते हैं।
- वृश्चिक में होने पर यश, साहस, पराक्रम में वृद्धि, आय, ऋण-मुक्ति आदि प्राप्त होते हैं।
- धनु में होने से शत्रुओं की संख्या में वृद्धि, क्लेश, भय, चिन्ता आ में बढ़ोत्तरी होती है।
- मकर में होने पर रोग, चिन्ता, कष्ट परन्तु शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
- कुंभ में होने पर रोग, कष्ट, धन-हानि तथा शुभ कार्यों को हानि पहुंचती है।
- मीन में होने पर ऐश्वर्य, सम्मान, वैभव, सुख आदि लाभ प्राप्त होते हैं।
शुक्र कुंडली के सभी भावो में सामान्य फलादेश
- प्रथम भाव में होने पर शारीरिक तथा मानसिक सुख, यश, प्रतिष्ठा आदि लाभ होते हैं।
- द्वितीय भाव में होने पर धन-संपत्ति का व्यय, स्त्री को कष्ट और सत्कर्मों में धन का व्यय होता है।
- तृतीय भाव में होने पर मातृ-सुख, प्रवास एवं स्थान परिवर्तन होता है।
- चतुर्थ भाव में होने से वाहन, पद, सुख, भूमि, कीर्ति आदि का लाभ प्राप्त होती है।
- पंचम भाव में होने पर बुद्धि, विद्या, पराक्रम तथा शुभ फलों का लाभ मिलता है।
- षष्ठ भाव में होने पर स्त्री-पुत्र सुख तथा हानि दोनों, शारीरिक कष्ट रोग आदि का भय रहता है।
- सप्तम भाव में होने पर व्यवसाय - व्यापार, धन, चिन्ता और उद्योग में अनिश्चितता आ जाती है।
- अष्टम भाव में होने पर मानसिक-शारीरिक कष्ट आदि सहने पड़ते हैं।
- नवम भाव में होने से ऐश्वर्य, स्त्री, वाहन आदि का सुख प्राप्त होता है।
- दशम भाव में होने पर व्याप् व्यवसाय में उन्नति, यश और राज सम्मान की प्राप्ति होती है।
- एकादश भाव में होने पर सम्मान, सुख तथा अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।
- द्वादश भाव में होने पर शारीरिक-मानसिक व्याधि, चिन्ता, कष्ट आदि प्राप्त होते हैं।
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